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प्राचीन भारतीय और पुरातत्व इतिहास >> बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :200
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2793
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-5 पेपर-1 प्राचीन भारतीय इतिहास - सरल प्रश्नोत्तर

प्रश्न- कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत क्या है? उसकी विस्तृत विवेचना कीजिये।

अथवा
मण्डल सिद्धांत का विस्तृत विवेचन कीजिए।

उत्तर- 

प्राचीन भारतीय राजनीतिक चिन्तकों के द्वारा अनेक महत्वपूर्ण सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है जो न केवल उस समय की राजनीतिक व्यवस्था के लिए अत्यधिक आवश्यक थे, अपितु इन सिद्धान्तों का आधुनिक राजनीतिक व्यवस्था में भी महत्व स्वीकार किया जा रहा है। एक सम्प्रभु राज्य को केवल आन्तरिक प्रशासन पर निगरानी की आवश्यकता नहीं होती है अपितु बाहरी मामलों अर्थात् अन्तराज्यीय सम्बन्धों पर उचित ध्यान देना पड़ता है ताकि कोई अन्य राज्य उस पर आक्रमण कर उसकी एकता, अखण्डता एवं सम्प्रभुता का अपहरण न कर सके। वर्तमान में भी प्रत्येक देश अपनी विदेश नीति का आधार मानकर संबंधों का निर्धारण करता है जिसका मूलभूत आधार 'राष्ट्रीय हित' होता है, इसलिए यह कहा जाता है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में स्थायी शत्रु या स्थायी मित्र नहीं होते, अपितु स्थायी राष्ट्रीय हित होते हैं।

भारतीय राजतंत्र का एक प्रमुख सिद्धांत मण्डल सिद्धांत है। अंतर्राज्यीय संबंधों में, राज्य को उसकी भौगोलिक स्थिति के आधार पर मित्र राष्ट्र या शत्रु राष्ट्र की संज्ञा दी गई है। राज्य की सुरक्षा तथा अस्तित्व का सुरक्षित रखने के उद्देश्य से आचार्य कौटिल्य द्वारा अपनी कृति अर्थशास्त्र के छठे अधिकरण के दूसरे अध्याय में मण्डल सिद्धान्त का विस्तृत वर्णन किया है। कौटिल्य द्वारा अंतर्राज्यीय संबंधों का यह सिद्धांत आदर्शों तथा वास्तविकता दोनों को ध्यान में रखकर इतना परिपूर्ण है कि यह सभी युगों में प्रासंगिक रहा है। आचार्य कौटिल्य ने राज्यों के पारस्परिक व्यवहार के संबंधों का स्वरूप निर्धारित करते हुए दो सिद्धांतों का विवेचन किया है- पड़ोसी राज्यों के साथ संबंध स्थापित करने के लिए मंडल सिद्धांत और अन्य राज्यों के साथ व्यवहार निश्चित करने के लिए षाड्गुण्य नीति |

मंडल का अर्थ- "राज्यों का वृत्त"। यह एक प्रकार की रणनीति है जिसमें विषय की आकांक्षा रखने वाला राज्य अपने चारों ओर के अन्य राज्यों को मण्डल मानता है।

मण्डल सिद्धांत एक 12 राज्यों के वृत्तों पर आधारित है। इसके अंर्तगत मण्डल का केन्द्र ऐसा राज्य होता है जो पड़ोसी राज्य को जीतकर अपने में मिलाने में प्रयत्नशील रहता है। इसे वह विजिगीषु राजा कहता है। मण्डल में 12 राज्य होते हैं- विजीगीषु, अरि, मित्र, अरि-मित्र, मित्र- मित्र, अरि मित्र - मित्र पाणिग्राह, आक्रंद, पाणिग्राहासार, आक्रंदसार मध्यम और उदासीन। उन्होंने मण्डल के इन सभी देशों के एक-दूसरे के साथ संबंधों को ही मण्डल सिद्धान्त का नाम दिया है। कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत भौगोलिक आधार पर यह दर्शाता है कि किस प्रकार विजय की इच्छा रखने वाले राज्य के पड़ोसी राज्य उसके मित्र सा शत्रु हो सकते हैं। इस सिद्धांत के अनुसार मण्डल के केन्द्र में एक ऐसा राजा होता है, जो अन्य राज्यों को जीतने का इच्छुक है, इसे 'विजीगीषु' कहा जाता है जबकि अरि, मित्र अरि-मित्र, मित्र-मित्र और अरि मित्र - मित्र यानि पांच राज्य विजीगीषु के सम्मुख तथा पार्ष्णिग्राह, आक्रंद, पार्ष्णिग्राहसार तथा आक्रन्दसार यानी चार राज्य के पृष्ठभाग में होते हैं। शेष दो राज्य मध्यम तथा उदासीन उसके एक तरफ स्थित होते हैं। इन सभी राज्यों का चरित्र इस प्रकार है-

1. विजीगीषु - वह राज्य जो अपने राज्य की सीमाओं का विस्तार करने की आकांक्षा रखता हो। यह मण्डल के केन्द्र में स्थित होता है।

2. अरि- विजीगीषु की सीमा पर स्थित या सामने वाला राज्य जो उसका शत्रु होता है, इसलिए यह अरि राज्य होता है।

3. मित्र - अरि राज्य के सामने का राज्य मित्र होता है क्योंकि वह अरि राज्य का शत्रु होने के कारण स्वाभाविक रूप से विजीगीषु का मित्र होता है।

4. अरिमित्र - मित्र के आगे वाला राज्य अरिमित्र कहलाता है क्योंकि वह अरि राज्य का मित्र तथा विजीगीषु का शत्रु होता है।

5. मित्र-मित्र - अरि मित्र के सामने वाला राज्य मित्र-मित्र होता है क्योंकि वह मित्र राज्य का मित्र होता है। यही कारण है कि वह विजीगीषु राज्य के साथ भी मित्रता रखता है।

6. अरि मित्र-मित्र - अरि मित्र-मित्र राज्य अरि मित्र राज्य का मित्र राज्य होता है। इसलिए वह विजीगीषु का शत्रु होता है।

7. पार्ष्णिग्राह (पीठ का शत्रु) - विजीगीषु के पीछे स्थित पार्ष्णिग्राह कहलाता है। यह राज्य अरि राज्य की तरह विजीगीषु का शत्रु होता है।

8. आक्रंद पार्ष्णिग्राह - राज्य के पीछे स्थित राज्य आक्रंद कहलाता है। यह राज्य विजीगीषु का मित्र राज्य होता है।

9. पार्ष्णिग्राह सार - पार्ष्णिग्राह सार राज्य पार्ष्णिग्राह का मित्र राज्य होता है तथा आक्रंद राज्य के पृष्ठ भाग पर स्थित होता है। यह विजीगीषु का शत्रु राज्य होता है।

10. आक्रंद सार - पार्ष्णिग्राह सार के पीछे स्थित राज्य आक्रंद सार कहलाता है। यह राज्य आक्रंद राज्य का मित्र होने के कारण विजीगीषु का भी मित्र होता है।

11. मध्यम - इस प्रकार का राज्य ऐसा होता है जो विजीगीषु तथा अरि दोनों ही प्रकार के राज्यों की सीमाओं से जुड़ा होता है। यह राज्य दोनों से अधिक शक्तिशाली होने के साथ ही जरूरत पड़ने पर वह इन दोनों में से किसी की भी सहायता कर सकता है या दोनों का मुकाबला भी कर सकता है।

12. उदासीन - इस प्रकार का राज्य विजीगीषु, अरि एवं मध्यम राज्य की सीमाओं से अलग होता है। यह राज्य अति शक्तिशाली होता है और अपनी इच्छानुसार इन तीनों राज्यों में से किसी की भी आवश्यकता होने पर सहायता कर सकता है।

कौटिल्य द्वारा प्रतिपादित मण्डल सिद्धांत को निम्न चित्र के माध्यम से समझा जा सकता है -

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उक्त 12 राज्यों का समूह राज्य मण्डल कहलाता है। कौटिल्य ने मण्डल सिद्धांत के द्वारा यह परिभाषित करने की पूरी कोशिश की है कि भौगोलिक आधार पर किसी राज्य विशेष का कौन-सा राज्य मित्र हो सकता है तथा कौन-सा शत्रु हो सकता है। उनके अनुसार यह सिद्धांत यह भी बताता है कि एक राज्य को दूसरे राज्य के साथ किस तरह का संबंध रखना चाहिए तथा अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और नीतियों का निर्धारण किस तरह करना चाहिए।

मण्डल सिद्धांत का विश्लेषण

कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत एक व्यावहारिक एवं पारदर्शिता पूर्ण सिद्धांत है। इस सिद्धांत में कौटिल्य ने राज्य के चारों ओर बनने वाले मण्डल (दूसरे राज्यों के घेरा) का विश्लेषण किया है। उसके मण्डल सिद्धांत के प्रमुख तत्व निम्न हैं-

1. कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत 12 राज्यों के एक केंद्र की कल्पना करता है।

2. मण्डल सिद्धांत में राज्यों को विशेष नाम एवं विशेष प्रकृति का उल्लेख किया गया है।

3. कौटिल्य के अनुसार यह संख्या घट-बढ़ सकती है।

4. कौटिल्य के अनुसार मध्यम एवं उदासीन राज्य को छोड़कर अन्य सभी राज्यों की शक्ति लगभग समान है।

5. कौटिल्य की स्पष्ट मान्यता है कि राज्य अपने पड़ोसी का शत्रु तथा उसके पड़ोसी का मित्र होता है।

6. उसकी मान्यता है कि राज्य को पड़ोसी राज्य से सतर्क रहते हुए अपना गठबंधन बनाना चाहिए।

7. यह शक्ति संतुलन के सिद्धांत पर आधारित है। यह राज्यों के आपसी सहयोग पर आधारित है।

कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत तत्कालीन परिस्थितियों के अनुसार स्थापित किया गया था, परन्तु आज की बदली परिस्थितियों में जिसमें भूमण्डलीकरण का दौर है तथा सैनिक शक्ति की अपेक्षा आर्थिक शक्ति का महत्व बढ़ गया है, प्रासंगिक नहीं रह गया है। इसके बावजूद तत्कालीन परिस्थितियों को देखते हुए उसकी यह महत्वपूर्ण देन है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- वर्ण व्यवस्था से आप क्या समझते हैं? भारतीय दर्शन में इसका क्या महत्व है?
  2. प्रश्न- जाति प्रथा की उत्पत्ति एवं विकास पर प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- जाति व्यवस्था के गुण-दोषों का विवेचन कीजिए। इसने भारतीय
  4. प्रश्न- ऋग्वैदिक और उत्तर वैदिक काल की भारतीय जाति प्रथा के लक्षणों की विवेचना कीजिए।
  5. प्रश्न- प्राचीन काल में शूद्रों की स्थिति निर्धारित कीजिए।
  6. प्रश्न- मौर्यकालीन वर्ण व्यवस्था पर प्रकाश डालिए। .
  7. प्रश्न- वर्णाश्रम धर्म से आप क्या समझते हैं? इसकी मुख्य विशेषताएं बताइये।
  8. प्रश्न- पुरुषार्थ क्या है? इनका क्या सामाजिक महत्व है?
  9. प्रश्न- संस्कार शब्द से आप क्या समझते हैं? उसका अर्थ एवं परिभाषा लिखते हुए संस्कारों का विस्तार तथा उनकी संख्या लिखिए।
  10. प्रश्न- सोलह संस्कारों का विस्तृत वर्णन कीजिए।
  11. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में संस्कारों के प्रयोजन पर अपने विचार संक्षेप में लिखिए।
  12. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के प्रकारों को बताइये।
  13. प्रश्न- प्राचीन भारत में विवाह के अर्थ तथा उद्देश्यों का उल्लेख कीजिए तथा प्राचीन भारतीय विवाह एक धार्मिक संस्कार है। इस कथन पर भी प्रकाश डालिए।
  14. प्रश्न- परिवार संस्था के विकास के बारे में लिखिए।
  15. प्रश्न- प्राचीन काल में प्रचलित विधवा विवाह पर टिप्पणी लिखिए।
  16. प्रश्न- प्राचीन भारतीय समाज में नारी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  17. प्रश्न- प्राचीन भारत में नारी शिक्षा का इतिहास प्रस्तुत कीजिए।
  18. प्रश्न- स्त्री के धन सम्बन्धी अधिकारों का वर्णन कीजिए।
  19. प्रश्न- वैदिक काल में नारी की स्थिति का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  20. प्रश्न- ऋग्वैदिक काल में पुत्री की सामाजिक स्थिति बताइए।
  21. प्रश्न- वैदिक काल में सती-प्रथा पर टिप्पणी लिखिए।
  22. प्रश्न- उत्तर वैदिक में स्त्रियों की दशा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  23. प्रश्न- ऋग्वैदिक विदुषी स्त्रियों के बारे में आप क्या जानते हैं?
  24. प्रश्न- राज्य के सम्बन्ध में हिन्दू विचारधारा का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
  25. प्रश्न- महाभारत काल के राजतन्त्र की व्यवस्था का वर्णन कीजिए।
  26. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के कार्यों का वर्णन कीजिए।
  27. प्रश्न- राजा और राज्याभिषेक के बारे में बताइये।
  28. प्रश्न- राजा का महत्व बताइए।
  29. प्रश्न- राजा के कर्त्तव्यों के विषयों में आप क्या जानते हैं?
  30. प्रश्न- वैदिक कालीन राजनीतिक जीवन पर एक निबन्ध लिखिए।
  31. प्रश्न- उत्तर वैदिक काल के प्रमुख राज्यों का वर्णन कीजिए।
  32. प्रश्न- राज्य की सप्त प्रवृत्तियाँ अथवा सप्तांग सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
  33. प्रश्न- कौटिल्य का मण्डल सिद्धांत क्या है? उसकी विस्तृत विवेचना कीजिये।
  34. प्रश्न- सामन्त पद्धति काल में राज्यों के पारस्परिक सम्बन्धों का वर्णन कीजिए।
  35. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्य के उद्देश्य अथवा राज्य के उद्देश्य।
  36. प्रश्न- प्राचीन भारत में राज्यों के कार्य बताइये।
  37. प्रश्न- क्या प्राचीन राजतन्त्र सीमित राजतन्त्र था?
  38. प्रश्न- राज्य के सप्तांग सिद्धान्त की विवेचना कीजिए।
  39. प्रश्न- कौटिल्य के अनुसार राज्य के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए।
  40. प्रश्न- क्या प्राचीन राज्य धर्म आधारित राज्य थे? वर्णन कीजिए।
  41. प्रश्न- मौर्यों के केन्द्रीय प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  42. प्रश्न- चन्द्रगुप्त मौर्य के प्रशासन की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
  43. प्रश्न- अशोक के प्रशासनिक सुधारों की संक्षिप्त विवेचना कीजिए।
  44. प्रश्न- गुप्त प्रशासन के प्रमुख अभिकरणों का उल्लेख कीजिए।
  45. प्रश्न- गुप्त प्रशासन पर विस्तृत रूप से एक निबन्ध लिखिए।
  46. प्रश्न- चोल प्रशासन पर एक निबन्ध लिखिए।
  47. प्रश्न- चोलों के अन्तर्गत 'ग्राम- प्रशासन' पर एक निबन्ध लिखिए।
  48. प्रश्न- लोक कल्याणकारी राज्य के रूप में मौर्य प्रशासन का परीक्षण कीजिए।
  49. प्रश्न- मौर्यों के ग्रामीण प्रशासन पर एक लेख लिखिए।
  50. प्रश्न- मौर्य युगीन नगर प्रशासन पर प्रकाश डालिए।
  51. प्रश्न- गुप्तों की केन्द्रीय शासन व्यवस्था पर टिप्पणी कीजिये।
  52. प्रश्न- गुप्तों का प्रांतीय प्रशासन पर टिप्पणी कीजिये।
  53. प्रश्न- गुप्तकालीन स्थानीय प्रशासन पर टिप्पणी लिखिए।
  54. प्रश्न- प्राचीन भारत में कर के स्रोतों का विवरण दीजिए।
  55. प्रश्न- प्राचीन भारत में कराधान व्यवस्था के विषय में आप क्या जानते हैं?
  56. प्रश्न- प्राचीनकाल में भारत के राज्यों की आय के साधनों की विवेचना कीजिए।
  57. प्रश्न- प्राचीन भारत में करों के प्रकारों की व्याख्या कीजिए।
  58. प्रश्न- कर की क्या आवश्यकता है?
  59. प्रश्न- कर व्यवस्था की प्राचीनता पर प्रकाश डालिए।
  60. प्रश्न- प्रवेश्य कर पर टिप्पणी लिखिये।
  61. प्रश्न- वैदिक युग से मौर्य युग तक अर्थव्यवस्था में कृषि के महत्व की विवेचना कीजिए।
  62. प्रश्न- मौर्य काल की सिंचाई व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  63. प्रश्न- वैदिक कालीन कृषि पर टिप्पणी लिखिए।
  64. प्रश्न- वैदिक काल में सिंचाई के साधनों एवं उपायों पर एक टिप्पणी लिखिए।
  65. प्रश्न- उत्तर वैदिक कालीन कृषि व्यवस्था पर टिप्पणी लिखिए।
  66. प्रश्न- भारत में आर्थिक श्रेणियों के संगठन तथा कार्यों की विवेचना कीजिए।
  67. प्रश्न- श्रेणी तथा निगम पर टिप्पणी लिखिए।
  68. प्रश्न- श्रेणी धर्म से आप क्या समझते हैं? वर्णन कीजिए
  69. प्रश्न- श्रेणियों के क्रिया-कलापों पर प्रकाश डालिए।
  70. प्रश्न- वैदिककालीन श्रेणी संगठन पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- वैदिक काल की शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालिए।
  72. प्रश्न- बौद्धकालीन शिक्षा व्यवस्था पर प्रकाश डालते हुए वैदिक शिक्षा तथा बौद्ध शिक्षा की तुलना कीजिए।
  73. प्रश्न- प्राचीन भारतीय शिक्षा के प्रमुख उच्च शिक्षा केन्द्रों का वर्णन कीजिए।
  74. प्रश्न- "विभिन्न भारतीय दार्शनिक सिद्धान्तों की जड़ें उपनिषद में हैं।" इस कथन की विवेचना कीजिए।
  75. प्रश्न- अथर्ववेद पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।

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